हक़ीक़तन_मैं_एक_मॉर्डन_लड़की_हूं


वो सर से लेकर पांव तक पर्दे में मलबूस मार्केट जाने के लिए तैयार थी,फ्लैट से निकल कर लॉक लगाया और चाबी पड़ोसन के हवाले कर दी ताकि देर होने की सूरत में उसके बच्चे आसानी से घर के अंदर आ सकें- पड़ोसन ने चाबी थामते हुए मानीखेज़ नज़रों से उसे देखा और हल्की सी तन्ज़िया मुस्कुराहट के साथ अंदर की तरफ चली गई- वो अफसोस से सर झटकती सीढ़ियां उतरते नीचे आ रही थी कि पड़ोसन के शौहर करामत साहब ऊपर की तरफ आते दिखाई दिए- उस पे निगाह पड़ते ही करामत साहब की आंखों में खबासत चमकी- कुछ दूर से ही बा आवाज़े बलंद मुखातिब हुए:
                 "अरे भाभी जान" सारा ज़ोर लफ्ज़ जान पर लगा दिया था गोया- कहीं जा रही हैं कुछ ज़रूरी काम हो तो अर्ज़ कीजिए हम जो मौजूद हैं आप कहां खुद संभालती फिरेंगी-"
आंखों में खबासत का रंग गहरा ही होता जा रहा था-
 
                "नहीं भाईसाहब..आपकी मेहरबानी..बस कुछ ज़रूरी काम है-"
उसने संजीदगी से जवाब दिया और आगे को बढ़ गई- करामत साहब की निगाह काफी देर तक उसके बुर्क़े में उलझती रही और लबो पे मुस्कुराहट रेंगने लगी-
मैन रोड पर निकलते ही उसे लगा जैसे हर कोई मज़ाक़ उड़ाती निगाहों से उसे अपनी गिरफ्त में लिए हुए है और ये कोई एक आज के दिन की बात नहीं थी,हर बार बाहर निकलते हुए उसे इन्ही सब चीज़ों का सामना करना पड़ता था- और वजह थी उसका बुर्क़ा !
इस मॉर्डन एरिये में रहते हुए जहां दुपट्टा तो दूर की बात, मुकम्मल लिबास भी कम ही ख्वातीन पे नज़र आता था उसका बुर्क़ा पहनना वाक़ई अजीब था- 

खुले हुए दस्तरख्वान पे अनगिनत पकवानों के दरमियान रखी हुई वो ऐसी प्लेट लगती जिसे ऊपर से ढांप दिया गया हो, और हर कोई सारा दस्तरख्वान छोड़कर बस उस प्लेट के तजस्सुस में पड़ा हो- लेकिन सबका हाल ये था कि जैसे मक्खियां चाह कर भी उस ढांपी हुई प्लेट को गंदा नहीं कर सकतीं थीं उसी तरह मुआशरे की खबासत भरी निगाहें चाह कर भी उस बुर्क़ापोश को मैला नहीं कर पा रही थीं- मार्केट पहुंच कर वो एक ग्रोसरी स्टोर में दाखिल हुई और सौदे की लिस्ट निकाल कर अशिया (सामान) का जायज़ा लेने लगी- खरीदो फरोख्त के बाद वो बाहर की जानिब पलटी ही थी कि अचानक उसको अपने पीछे आवाज़ आई:
                 "जाहिल औरत"
उसने आवाज़ की सम्त मुड़कर देखा तो सामने ब्लू जींस पे रैड शॉर्ट टॉप पहने स्लीवलैस बाज़ूओं के साथ एक फैशनेबल लड़की खड़ी दिखाई दी जो काफी गुस्से से उसे घूर रही थी-

उसने सवालिया नज़रें लड़की की जानिब उठाईं तो वो लड़की दोबारा मुखातिब हुई:
                "तुम जैसी जाहिल औरतों की वजह से हम औरतों को डी ग्रेड किया जाता है सिर्फ तुम जैसी औरतें हर जगह हमारी नाक कटवाती फिरती हैं- हमें बराबरी के लेवल पर खड़ा नहीं किया जाता- हमें कमज़ोर समझा जाता है- आखिर ये छह गज़ का टेंट ओढ़ कर तुम क्या साबित करना चाहती हो? होश में आओ दुनियां के साथ चलना सीखो दुनियां इतनी मॉर्डन हो चुकी है... कहां से कहां पहुंच चुकी है और तुम जैसी जाहिल औरतें अभी तक इस तंबू से ही बाहर नहीं आ सकीं-"
उसने सुकून से उसकी पूरी बात सुनीं, फिर दो क़दम आगे बढ़ी और इत्मिनान से बोली:
                "ज़माना ए जाहिलियत में जब इस्लाम नहीं था तो लोग बे लिबास थे.. फिर इस्लाम आया लोगों को समझ बूझ दी और लोग अपने आपको ढांपने लगे- यूं रफ्ता रफ्ता जाहिलियत खत्म हुई और लोग मॉर्डन होने लगे- 
अब अगली बात का फैसला आप खुद कर लें कि ज़माना ए जाहिलियत में नंगे होकर जंगलों में घूमने और ज़माना ए जदीद (तरक़्क़ी याफ्ता दौर) में नंगे होकर सड़कों,पार्कों और होटलों में घूमने में क्या फर्क़ है?"
मेरे ख्याल में तो कोई फर्क़ नहीं... मैं अगर ज़माना ए जाहिलियत की होती तो ज़रूर बेलिबास या आधे अधूरे लिबास में घूमती लेकिन मैं पर्दा करती हूं और अपने आप को ढांप के रखती हूं क्यूंकि मैं..........
          *#हक़ीक़तन_एक_मॉर्डन_लड़की_हूं*

ये कहकर वो पुरवक़ार अंदाज़ में वापसी की तरफ मुड़ी तो सामने से आते दो मर्दों ने एक तरफ होकर उसको गुज़रने का रास्ता दिया- तशक्कुर (शुक्र) के जज़्बात से उसने ऊपर आसमान की तरफ देखा और एक मुत्मइन सा आंसू उसकी आंख से निकल कर बुर्क़े में जज़्ब हो गया...!!!!
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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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