जी हा ...अपनी तकदिर के जोर से बना बादशाह कुतुबूद्दीन ऐबक बडा उदार और न्यायप्रिय था...
अब ये बात भी जाहीर है की एक समान्य गरीब मझदुर का बेटा एबक जो दास प्रथा का शिकार बना जो समंतो के वहा बेच डाला गया वहा एक काजी ने खरीदकर उसके पुत्रो ने बादशाह महमद घोरी को बेच डाला ...
एसे ही वह बन्दा अपने ईमान और काबिलियत के दम पर बादशाह घोरी का प्रिय हो गया और ऊँहे सूबेदार बनाय़ा गया बाद मे घोरी ने ऊँहे दिल्ही की गद्धी भी सोप दी ...
खैर ...यह बादशाह एबक इतिहास के तौर पर काफी उदार सासक माना ज़ाता है और इसी निकदिली और उदारता की वजह से उसे लाखबख्स भी कहा गया है ...
...एबक के जीवन की एक निकदिली और न्याय का किस्सा
कुतुबुद्दीन ऐबक शिकार खेल रहा था, उसने तीर चलाया और जब शिकार के नज़दीक गया तो देखा कि एक नौजवान उसके तीर से घायल गिरा पड़ा है।
कुछ ही पल में उस घायल नौजवान की मौत हो जाती है। पता करने पर मालूम हुआ कि वह पास के ही एक गाँव में रहने वाली एक बुजुर्ग महिला का इकलौता सहारा था और जंगल से लकड़ियाँ चुन कर बेचता और जो मिलता उसी से अपना और अपनी माँ का पेट भरता था।
कुतुबुद्दीन ऐबक उसकी माँ के पास गया, और उसे बताया कि उसके तीर से गलती से उसके बेटे की मौत हो गयी है। माँ रोते-रोते बेहोश हो गयी।
फिर कुतुबुद्दीन ऐबक ने खुद को क़ाज़ी के हवाले किया और अपना जुर्म बताते हुए अपने खिलाफ मुकद्दमा चलाने की अर्ज़ी दी।
क़ाज़ी ने मुकदमा शुरू किया बूढ़ी माँ को अदालत में बुलाया और कहा कि तुम जो सज़ा कहोगी वही सज़ा इस मुजरिम को दी जायेगी। उस बूढ़ी माँ ने कहा कि ऐसा बादशाह फिर कहाँ मिलेगा जो अपनी ही सल्तनत में अपने ही खिलाफ मुकदमा चलवाए और ऐसी गलती के लिए मुकदमा चलवाए जो उसने जानबूझ कर नहीं किया हो।
उस बूढ़ी माँ ने कहा कि आज से कुतुबुद्दीन ऐबक ही मेरा बेटा है, मैं इसे माफी देती हूँ।
क़ाज़ी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को बरी कर दिया और कहा – ”अगर आज तुमने अदालत में ज़रा भी अपनी बादशाहत दिखाई होती तो मैं तुम्हें उस बुढ़िया के हवाले न करके खुद ही सख्त सज़ा देता।”
इस पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी कमर से खंज़र निकाला और क़ाज़ी को दिखाते हुए कहा–''अगर तुमने मुझसे मुजरिम की तरह व्यवहार न करके ज़रा भी मेरी बादशाहत का ख़याल किया होता तो मैं तुम्हें इसी खंज़र से मौत के घाट उतार देता।
”ये है असल बादशाहत और ये है असल इन्साफ, और यही है इस्लाम की तालीम।
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