शान हजरत अली

कभी ज़मीन हिलती है कभी दर कांप जाता है....
अली का नाम सुन कर अब भी "ख़ैबर" कांप जाता है.....

हम वह नही जो साल में 2 मर्तबा अली-अली कहले और पूरे साल याद न करे...बल्कि अहले सुन्नत का शायद ही कोई जलसा ऐसा होता हो जहां मौला अली का ज़िक्र न हो....अल्हम्दुलिल्लाह..  क्योंकि शेरे ख़ुदा का ज़िक्र हिम्मत दिलाता है और हुज़ूर अलैहिस्सलाम के एक हुक़्म पर फ़ौरन सब कुछ छोड़कर इस्लाम के लिए जान बाज़ी पर लगाने का जज़्बा देता है।   

#याद है आपको कभी पढ़ा हो जंगे ख़ैबर के वक़्त जब सब हिम्मत हार गए थे जब हज़रते अली रदियल्लाहु तआला अन्हो ने अपने बायें हाथ से ख़ैबर का 150 मन का दरवाज़ा (हमारे यहाँ एक मन 40 किलो का होता है) जो शेरे ख़ुदा हज़रते अली इब्ने अबी तालिब ने अकेले उठा कर खड़ा कर दिया और उसे ढाल बना कर दुश्मनो से लड़ते रहे फिर ख़्याल आया की में अकेला लड़ रहा हु तब आपने वो 150 मन का दरवाज़ा अपनी पीठ पर रखा था जिस पर से सहाबये किराम रिदवानुल्लाही तआला अलैहि अजमईंन चढ़ कर ख़ैबर के क़िले में घुसे थे.......जिसे बाद में कई सहबियों ने मिल कर वहाँ से हटाया था.......

और ज़ुल्फ़िकार से इतने बढे पहलवान के एक ही वार में दो टुकड़े किये थे फिर फ़रमाया की मारना मक़सद न था जो हुज़ूर अलैहिस्सलातो वस्सलाम ने ज़ुल्फ़िकार अता की है उसका सदक़ा उतारना मक़सद था.....  ये शान है हसनैन के बाबा की....

जब नबीये करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया था
"अली जैसा कोई जवान नही और ज़ुल्फ़िकार जैसी कोई तलवार नही"

SHARE

Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

  • Image
  • Image
  • Image
  • Image
  • Image
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment